सुख एक अनुभूति हैं। इसमे आनन्द, अनुकूलता, प्रसन्नता, शांति इत्यादि की अनुभूति होती हैं उसे सुख कहा जाता हैं। सुख की अनुभूति मन से जूड़ी हुई हैं और बाह्य साधनो सेभी सुख की अनुभूति हो सकती हैं और अन्दर क आत्मानुभव से बिना किसी बाह्य साधन एवम अनुकूल वातावरण के बिना भी हरहँएश सुख की अनुभूति हो सकती हैं।नारद ने युधिष्ठिर को सुख की परिभाषा बताते हुए सबसे पहले 'अर्थ' की बात कहा था। उनके मत में यदि मनुष्य के पास निम्नलिखित ६ वस्तुएँ हों तो वह सुखी है-

अर्थागमो नित्यमरोगिता च, प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यस्य पुत्रो अर्थकरी च विद्या षड् जीवलोकस्य सुखानि राजन् ॥
हे राजन छः चीजे अपने पास होना जीवलोक में 'सुख' हैं - अर्थागम (पैसा आवे), निरोग काया, प्रिय पत्नी, प्रियवादिनी पत्नी, आज्ञाकारी पुत्र, अर्थकरी विद्या।
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